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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की प्रचंड जीत के बाद चंपावत के विकास की संभावना

करीब छह सौ साल पहले तक काली कुमाऊं चम्पावत चंद वंश की राजधानी रही थी। आज भी काली कुमाऊं ऐतिहासिक तहसील, राजबुंगा का किला, बालेश्वर मंदिर, एक हथिया नौला आदि चम्पावत के गौरवशाली अतीत की याद दिलाते हैं।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की प्रचंड जीत के बाद विशेषज्ञों का भी मानना है कि चंपावत के भाग्योदय का समय आ गया है। उम्मीद है कि अब ना केवल प्राकृतिक संसाधन, सौदर्य से भरपूर चम्पावत में विकास की बयार बहेगी, बंजर भूमि आबाद करने के लिए रिवर्स पलायन होगा तो लघु उद्यम सेक्टर में बूम आ सकता है। पर्यटन सुविधाएं बढ़ाने के प्रोजेक्ट पर तो काम भी शुरू हो गया है। उम्मीद है कि मुख्यमंत्री की जीत के बाद जिले के पहाड़ी के साथ ही मैदानी इलाके टनकपुर बनबसा पर्यटन के साथ ही शिक्षा, उद्योग के क्षेत्र में पहचान काम करेगा।

इतिहासकार प्रो अजय रावत के अनुसार उत्तराखंड में कत्यूरी राजवंश के पतन के बाद गढ़वाल में परमार राजवेश व कुमाऊं में चंदवंश की स्थापना हुई। चंदवंश की राजधानी चंपावत के संस्थापक राजा सोमचंद थे, जो प्रयागराज के निकट झूसी के निवासी थे। कत्यूरी राजा सोमचंद से बड़े प्रभावित हुए और उन्होंने वर्ष 1025 में अपनी पुत्री व चंपावत उन्हें दहेज में दे दिया। धीरे धीरे सोमचंद ने राज्य का विस्तार किया और पिथौरागढ़, डीडीहाट तक राज स्थापित हो गया। चंद राजा स्थापत्य कला और संगीत के शौकीन थे। बालेश्वर मंदिर समेत अन्य महत्वपूर्ण मंदिर चंद वंश की ही देन है।

साम्राज्य बढ़ने के बाद 1525-26 में चंपावत से राजधानी को अल्मोड़ा स्थानांतरित कर दिया। अल्मोड़ा राजधानी की स्थापना भीष्म चंद ने की लेकिन उनका शासन अल्प रहा। चंपावत की खड़ी होली व अल्मोड़ा की बैठी होली के संरक्षण का श्रेय भी चंद वंश को जाता है। स्थानीय देवी देवताओं को चंदवंश ने खूब सम्मान दिया। न्याय देवता गोलज्यू चंदवंश से ही जुड़े थे, वास्तविक रूप में उनके प्रधान सेनापति थे। उनकी युद्ध में मृत्यु हुई थी, इसलिए उन्हें अमरत्व प्राप्त हुआ था।

चंपावत से शुरू हुई वीरगति प्राप्त सैनिकों को सम्मान देने की परंपरा प्रो रावत के अनुसार सैन्य परंपरा व सैन्य प्रशिक्षण की स्थापना का श्रेय भी चंद वंश को ही जाता है। चंदवंश के दौरान शांतिकाल में सैनिकों को आखेट के लिए भेजा जाता था। राजा अकबर के अपने समकालीन रुद्रचंद को शिकारी के रूप में महत्व देते थे। मुगल शासक अकबर रुद्रचंद को बाजे के आखेट के प्रशिक्षण के लिए भारत का सर्वोत्तम व्यक्ति मानते थे।

चंपावत में ही चंदशासकों नेवीर गति प्राप्त सैनिकों को सम्मान प्रदान करने की प्रथा शुरू की थी। जब भी सैनिक वीरगति को प्राप्त होते थे उसकी विधवा, बहन या मां को चंपावत राजधानी में आमंत्रित कर सम्मानित किया जाता था। राजा वीर सैनिक की विधवा के पालन पोषण के लिए जागीर प्रदान करता था, जिसे रौत की संज्ञा दी गई। कूर्मांचल शब्द की उत्पत्ति भी चंपावत से ही हुई। मान्यता है कि भगवान विष्णु सहस्रों तक कूर्म के रूप में चम्पावत में तपस्या की। चम्पावत भारत तिब्ब्त व भारत नेपाल व्यापार का भी प्रमुख केंद्र रहा है।

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